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Saturday 18 August 2018

तालमेल



तालमेल

कभी स्वर फिसल जाते हैं
तो कभी व्यंजन !
तालमेल न बिठा पाए
स्वर और व्यंजन !...
स्वर पहाड़ चढ़ते हैं 
तो व्यंजन उतर आते हैं
व्यंजन ऊंचाइयां नापते हैं
तो स्वर लुढ़क जाते हैं ! ...
ऊंचाइयों से उठकर
निर्जन होते पहाड़ों की कराह
पहाड़ उतरने वालों को....
रोक नहीं पाती है
अनसुनी सी ...
पहाड़ों में ही बिखर जाती है ...
काश ! स्वर और व्यंजन
साथ चढ़ते उतरते ठहरते
विकास की इबारत लिखते
दुर्गम भी सुगम होता
बचपन यौवन बुढ़ापा
पहाड़ों को संवारता...
पहाड़ों में रंग बिखेरता..
.....
अनहद


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