आदमी !
कंदराओं से गाँव
गाँव से नगर
नगर से महानगर
महानगरों से.....
सीमाओं से बंधी दुनिया
उसके अन्दर आदमी
थमा नहीं है आदमी !
परत दर परत...
आदमी के अन्दर आदमी
आदमी के बाहर आदमी
उसके अन्दर...
एक और आदमी !
परत दर परत
एक आदमी के अंदर कई आदमी !
स्वयं से जूझता आदमी
खुद को खुद से
परत दर परत छिपाता आदमी !
.... अनहद
No comments:
Post a Comment