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Friday 24 July 2015

बोलता मौन

  ||बोलता मौन||

अलमस्त गज
उत्तान शिखर
हरीतिमा की
    ओट में __
कल कल निनाद
शील गंगा
सहज अल्हड़
    अंठखेलिया स्वरुप में__
एकांत
शांत निर्मल
छवि अलौकिक
ठौर मन यहीं
पा लेता है,'
अनुत्तरित कुछ
रह गया
जीवन सफ़र में
जवाब निश्छल,
       मन यहाँ ____
मौन ही यहाँ पा लेता है..
.. विजय जयाड़ा

Monday 20 July 2015

जिजीविषा

_\ जिजीविषा /__


पाषाण भेदकर
ज्यों वो__
धरती से उठा
जीत का उल्लास
उसके चेहरे पर दिखा,
ऋतुएँ अब आएँगी
अनुकूल और
प्रतिकूल भी
संघर्षों से जूझकर
स्नेह बरसाना__
फितरत में है
उसके जन्म से ही गुंथा..
.. विजय जयाड़ा 20.07.15

Saturday 18 July 2015

साहिल पर मुन्तजिर हैं

 

   साहिल पर मुन्तजिर हैं
   ख्वाइश-ए-दीदार हम,
  कभी तो लहर आएगी
     तपते हैं धूप में हम__
  अरमान कम नहीं हैं
   जुनूं भी है इधर बहुत,
मंजिल पास आएगी
        हसरत में फिरते हैं हम___

--- विजय जयाड़ा 09.07.15

 

तलाश

\\ तलाश //


इंसान मंगल तल पर
जिंदगी तलाशता है !
मगर धरती के तल पर

इंसानियत खोजता हूँ__
भटकता हूँ तलाश में
हर खंडहर से पूछता हूँ
दरिया और तटों से
वो तहजीब पूछता हूँ__
बदली नहीं ये धरती
न आसमां ही बदला !
बदल गया क्यों इंसान !
वजह तलाशता हूँ__
गुजरता हूँ उधर से
जिधर से कभी चला था
गुम गया बहुत पहले
वो सामान खोजता हूँ__
तलाश न जाने कब तक
ठौर है न ठिकाना !
किनारों की तलाश में अक्सर
         उतराता और डूबता हूँ____

.. विजय जयाड़ा 05.0715



 

लक्ष्य

____\ लक्ष्य /____
 
हो तम घनघोर कितना
जुगनू घबराते नहीं !

टिमटिमाहट ही सही,
       चमकना____
बिसराते वे नहीं !
     लक्ष्य बेशक__
दूर और दुर्गम,
करीब आ ही जायेगा,
कदम बढ़ाकर
   अगर राही__
         पथ में थम जाता नहीं____
 
.... विजय जयाड़ा

लक्ष्मण झूला < मोहन चट्टी < मोढ खाल, प्राचीन पैदल यात्री बद्रीनाथ मार्ग।

सर सब्ज दयार

सर सब्ज दयार

 न हिन्दू है, न मुसलमान ही कोई यहाँ
न सिख और बौद्ध बसर दीखती यहाँ,
ईसाइयों की दूर तक कोई खबर नहीं
अमन औ खुशहाली की यहाँ बसर है।
नाम अलग हैं मगर कोई शोर नहीं है
मजहबी बिसात, मोहरों का खेल नहीं है,
आपस में रहते हैं सभी मेल-जोल से
छोटे और बड़े का भी यहाँ भेद नहीं है !!

धर्म जाति पंथ का बसेरा यहाँ नहीं
फिरका पसन्दों का भी बोलबाला नहीं,
दैरोहरम भी दूर तक दिखते नहीं यहाँ
      मगर,सर सब्ज दयार में__
हर कोई दुनिया की खिदमत में लगा है यहाँ !!

... विजय जयाड़ा

Saturday 11 July 2015

उद्गार

 

 उद्गार 

साथियों, मित्रवर, विजय जयाड़ा जी के लिए मन के कुछ उद्गार व्यक्त करना चाहता हूं,समर्पित हैं


विजय जयाड़ा धीरमति, होते नहीं अधीर।
देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर।।
एक घड़ी आधी घड़ी, आधे तें पुनि आध।
विजय जयाड़ा साथ तो, होवे कौन व्याध।।
सूक्ष्म चितेरे प्रकृति के, अनुसंधानी आप।
    व्यापक सोच बनाई है, नहीं बनाई  ‘खाप’।।
शिक्षा के संधान में, लगे रहें दिन- रात।
कैसे नवयुग आएगा, करते रहते बात।।
भूतकाल के द्वार पर, पढ़ते हैं इतिहास।
नई सोच नई व्याख्या, रहती इनके पास।।
सौम्य सरल मितभाष हैं, मृदुल हास्य की खान।
मित्र मंडली में सदा, निरभिमान श्रीमान।।
रुचिकर तर्क प्रमाण से, लिखते हैं इतिहास।
फोटोग्राफी में कुशल, देवभूमि का वास।।

सादर..
 रचना :अनुपम पाण्डेय

पहली बारिश


_\\ पहली बारिश //__ 

हवा चली मंद - मंद
फिर बवंडर का सुर उठा
धूल उड़ी चारों दिशा
मानव यहाँ-वहाँ थमा !
झूमे अलसाए विटप
गीत मधुर कोई सुना !
हरषाया अलसाया मन
जब झूम-झूम मेघा गरजा !
बिजलियाँ कड़की गगन में
    सुर___
पहली बारिश का सुना !! 

..विजय जयाड़ा 22.06.15
 

पाती

__\\पाती //__
 
दिवस गए
कई रैन गयी
मौल्यार बसंत भी
बीत गया
खिले फूल भी
विरह में मुरझा गए
तेरे लौट के
आने के वादे
नहीं पूरे हुए
तपती धूप
बाट निहारी तेरी
शीत से अब तक
तकते तकते
आँखे थकी अब मेरी
पर तू निर्मोही
आया नहीं
अब तक पलट कर
राह मेरी ..
दिवस गए
कई रैन गयी
मौल्यार बसंत भी
बीत गया
खिले फूल भी
विरह में मुरझा गए
तेरे लौट के
आने के वादे
नहीं पूरे हुए
तपती धूप
बाट निहारी तेरी
शीत से अब तक
तकते तकते
आँखे थकी अब मेरी
पर तू निर्मोही
आया नहीं
अब तक पलट कर
राह मेरी ..
उलाहनों भरी
पाती पढ़कर !
सोया जीवन
फिर मचल उठा
रोके नहीं अब
कोई मुझको..
रुकने नही देते
पग मुझको,
अब दौड़ चला
मैं निकल पड़ा
पर्वत से मिलने
दूर निकल चला..

.. विजय जयाड़ा 23.06.15

मल्हार

\~\ मल्हार /~
~~~~~~~~

 रिमझिम बारिश
मनभावन फुहार
वन मयूर संग
नाचे मन मयूर मन के द्वार_
घुमड़ घुमड़
बदरा उमड़े श्वेत श्याम,
सब मिल गाएँ
 मधुर गीत मल्हार_
उचक-उचक देख
हरषाय मन,
बैरन लाज मोहे रोके री_
तन अब बस में नहीं, सखी !
तोड़_ लाज का पहरा
अंगना,..मैं चली_
भीगे बिन अब_
 रहा न जाय री !

..विजय जयाड़ा