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Sunday 19 August 2018

हम हो जाएं



हम हो जाएं


आओ ! ऐसे सफ़र पर जाएँ
जहाँ मैं और तू हम हों जाएँ
बाधा दीवारों की न वहां हो 
अम्बर खुला खिली अवनी हो..
दूर क्षितिज जब देखे हमको
मन ही मन मुस्काए रिझाए
गिरि कानन आंगन मिल झूमें
सरगम चहुदिश बांह फैलाये ..
घटाटोप घन उमड़ घुमड़ कर
वन मयूर को उकसाए
उड़ता आँचल थाम पनिहारी
मंद मंद मुस्काए लजाए ..
झर झर निर्झर कल कल नदियाँ
देख देख बलखाएँ इतराएँ
पक्षी चहकें मृग भरें कुलाचें
गुन गुन भँवरे गीत सुनाएँ ...
अपने पराये का भेद नहीं हो
मिल जुल कर वहां रैन बिताएँ
छैल छबीले इन्द्र धनुष तब
खुश हो झर झर सुमन बरसाएँ ...
आओ ! ऐसे सफर पर जाएं
जहाँ मैं और तुम हम हो जाएं ...
.... अनहद 


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