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Tuesday 15 October 2013

अल्फाजों का सफ़र



अल्फाजों का सफ़र

अल्फाजों,
अब समझ लो !!
तुम्हें बहुत दूर तक है जाना !!
थकना नही
बस चलते ही जाना.
समेट लो मेरी रूह को
जिसे, उनके
जिगर तक है पहुँचाना.
बेशक न दें लफ्ज़
उनके.राह में साथ तुम्हारा
ये तय है कि उनके अल्फाज़
देंगे न साथ तुम्हारा,
पर चलना है तुम्हें दूर तक,
देना है मेरा साथ.
लफ़्ज़ों बिना भी
साथ उनके तुम चलते चले जाना
खुदगर्ज़ कहीं तुम
इतना न हो जाना !
सुनके तुम्हें जो,
उन्हें होने लगे कुढ़न
तुम दर्द उन्हें देते हुए,
बढे न चले जाना.
चेहरे पर उनके शिकन देख,
तुम वहीँ ठहर जाना, वहीँ ठहर जाना.
ठहरने से तुम्हारे अगर,
होंठों पे उनके
नूरे तबस्सुम छलकने लगे.
पुरजोर अह्सासे सुकून,,
जो होने उन्हें लगे,
तो तुम इसे वापसी का,
बेजुबां फरमान समझना.
बेशक लड़खड़ाते हुए,
तुम वापस चले आना, यहीं वापस चले आना !!