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Saturday 18 August 2018

लहराती खुशियाँ



लहराती खुशियाँ
ठहरना नहीं !
बरसना नहीं !
तो क्यों उमड़ घुमड़
चले आते हैं
ये बादल !
दो चार छींटे डालकर
सूखी धरती को बहलाकर
क्यों बैचैन कर जाते हैं
ये बादल !
बरसों !
ठहरकर 
मन भरकर कर बरसों
तब तक बरसो !
जब तक 
धरती का मटियाला 
धूसरित आंचल
हरियाला होकर न
लहराने लगे
बरसों बाद परदेश गए 
बेटे के घर लौट आने पर
मां के मन में 
लहराती खुशियों की तरह ...
...
अनहद



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