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Sunday 19 August 2018

भगीरथ



भगीरथ
     खुद के लिए__
अपनों के लिए
कुछ कर गुजरने में
बीत जाती है जिंदगी
निन्यानबे के
फेरे में
खुद तक सिमट कर
रह जाती है जिंदगी..
क्या पाया !
क्या खोया !!
मैंने अच्छा किया
उसने बुरा किया
 इकतरफा__
हिसाब के कागज पर
 घिसटकर__
अंतिम पायदान तक
पंहुच जाती है जिंदगी..
विरले होते हैं
जो जीने के मायने
बदल देते हैं
जीवन की नई परिभाषाएं
गढ़ देते हैं..
अपनों के लिए प्रायः
सभी जीते हैं
मगर कुछ भगीरथ !
      खुद के लिए ___
अपनों के लिए ही नहीं जीते !!
अजनबियों का जीवन भी
  आसान कर__
दिलों में अमर हो जाते हैं ...
...
अनहद 

अलकनंदा, भागीरथी संगम, गंगा नाम उद्गम तीर्थ, देवप्रयाग, उत्तराखंड


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