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Saturday 18 August 2018

पुल



 पुल 

गुज़रे कल को 

आज से आज को. 

कल से यादों को 

घरोंदो से एहसासों को 

एहसासों से

  हम सब को   

मिलाता है पुल... 

संवेदनाएं रीति रिवाज़

हंसी और उदासी 

गुजरते हैं पुल से

इस तट को उस तट से 

मानव को मानव से 

मिलाता है पुल..

नफरत को प्यार से

बिछुड़े को अपनों से 

आर को पार से 

मातम को उत्सव से

  मिलाता है पुल..   

हर तरह की..

आवाजाही 

मौसमी कहर से

टूटता दरकता है 

समय-समय पर 

मरम्मत मांगता है

     फिर ताउम्र...... 

दिलों को दिलों से

     मिलाता है पुल .....

मगर....

लोहे का हो या सीमेंट का 

या हो लकड़ी का... 

या स्नेहासिक्त भावनाओं के

ताने बाने से बना

हद से बढ़ जाती है 

जब नफरतें !

व्याकुल मानवता का 

चीत्कारों का लाशों का

चश्मदीद गवाह बन जाता है पुल

......अनहद




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