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Saturday 29 August 2015
Friday 28 August 2015
पूनम ...
........ || पूनम || ........
दिन चार बसंत छलावा है
ग्रीष्म शिशिर से बैर न कर
जीवन के इस छलावे में
अपनों में ही तू भेद न कर.....
ग्रीष्म शिशिर से बैर न कर
जीवन के इस छलावे में
अपनों में ही तू भेद न कर.....
जीवन के सफर में हमराही
बहुत मिले और बिछुड़ गए,
सदा साथ दिया यहाँ किसने !
निर्लिप्त रह विषय भोग तू कर......
जीवन बेमोल अमोल मिला
ईमान क्यों व्यर्थ गंवाता है
ईर्ष्या और द्वेष में पड़ कर तू
जीवन का मोल यूँ ही न घटा ....
जीवन पूनम का चाँद यहाँ
अमावस निश्चित ही आनी है
सिमटे पूनम न व्यर्थ यूँ ही !
निज जीवन को सार्थक तू कर......
..विजय जयाड़ा
बहुत मिले और बिछुड़ गए,
सदा साथ दिया यहाँ किसने !
निर्लिप्त रह विषय भोग तू कर......
जीवन बेमोल अमोल मिला
ईमान क्यों व्यर्थ गंवाता है
ईर्ष्या और द्वेष में पड़ कर तू
जीवन का मोल यूँ ही न घटा ....
जीवन पूनम का चाँद यहाँ
अमावस निश्चित ही आनी है
सिमटे पूनम न व्यर्थ यूँ ही !
निज जीवन को सार्थक तू कर......
..विजय जयाड़ा
Saturday 22 August 2015
Saturday 15 August 2015
आलंबन ..
..... आलम्बन .....
मन के शांत दरिया में
सहसा कुछ ऊपर उठा !
देख मन स्पंदित हुआ
आलम्ब अंतस को मिला,
मगर देखते ही देखते
नयी धारा उसमें आ मिली !
बहा ले गयी साथ कुछ..
बहकर खारे में जा मिला !
ठहरा था,अब तक बहाव में जो ..
ग्रास बड़ी मछलियों का बनकर
काल कवलित होता गया !
प्रस्तर प्रहार झेलता..
तट किनारे कुछ जा लगा !
श्रांत क्लांत मन पाने को
व्याकुल उसकी तरफ बढ़ा ..
संतोष कर पाकर उसे
तब मन स्थिर हुआ !..
खारे और मछलियों से
बचा कर रख उसे...
अंतस ...
आलाम्बित उस पर हुआ ...
सहसा कुछ ऊपर उठा !
देख मन स्पंदित हुआ
आलम्ब अंतस को मिला,
मगर देखते ही देखते
नयी धारा उसमें आ मिली !
बहा ले गयी साथ कुछ..
बहकर खारे में जा मिला !
ठहरा था,अब तक बहाव में जो ..
ग्रास बड़ी मछलियों का बनकर
काल कवलित होता गया !
प्रस्तर प्रहार झेलता..
तट किनारे कुछ जा लगा !
श्रांत क्लांत मन पाने को
व्याकुल उसकी तरफ बढ़ा ..
संतोष कर पाकर उसे
तब मन स्थिर हुआ !..
खारे और मछलियों से
बचा कर रख उसे...
अंतस ...
आलाम्बित उस पर हुआ ...
.. विजय जयाड़ा 03.06.15
यादों का झुरमुट
....यादों का झुरमुट ....
यादों का बिखरा झुरमुट
हमेशा मजबूर करता है..
वर्तमान में ठहर जाने को,
पुरानी यादों की बयार
जब कभी स्पर्श करती है
पत्तियां फड़फड़ाती हैं ,
मानों अलट-पलट कर
उनमे लिखी यादों की इबारत
पढवाने को व्याकुल हैं
शाखें भी झुक - झुक कर
गवाही को आतुर लगती हैं !! ..
मगर ! छितराई यादें हैं.. कि
मिलकर सिमटती ही नहीं !!
तंग बयार !! तेज झोंका बन
बिखरे झुरमुट से टकराती है,...
शाख और पतियाँ समवेत...
मजबूर कर देती हैं
यादों में खो जाने के लिए
दूर छूट जाता है वर्तमान !!
परत दर परत उघड़ने लगती हैं
धुंधलकी यादों की परतें ..
पहुंचा देती हैं जीवंत अतीत में
जहाँ हर पात्र ... हर चीज
आतुर हैं !! स्पर्श पाने के लिए
तभी दौड़ा चला आता है वर्तमान
ठहर जाता है बयार का झोंका !
बिखरने लगता है यादों का झुरमुट
नम हो जाती हैं बिछुड़ती पलकें,
शायद ...
बिखरे झुरमुट को नम रखने के लिए !
हमेशा मजबूर करता है..
वर्तमान में ठहर जाने को,
पुरानी यादों की बयार
जब कभी स्पर्श करती है
पत्तियां फड़फड़ाती हैं ,
मानों अलट-पलट कर
उनमे लिखी यादों की इबारत
पढवाने को व्याकुल हैं
शाखें भी झुक - झुक कर
गवाही को आतुर लगती हैं !! ..
मगर ! छितराई यादें हैं.. कि
मिलकर सिमटती ही नहीं !!
तंग बयार !! तेज झोंका बन
बिखरे झुरमुट से टकराती है,...
शाख और पतियाँ समवेत...
मजबूर कर देती हैं
यादों में खो जाने के लिए
दूर छूट जाता है वर्तमान !!
परत दर परत उघड़ने लगती हैं
धुंधलकी यादों की परतें ..
पहुंचा देती हैं जीवंत अतीत में
जहाँ हर पात्र ... हर चीज
आतुर हैं !! स्पर्श पाने के लिए
तभी दौड़ा चला आता है वर्तमान
ठहर जाता है बयार का झोंका !
बिखरने लगता है यादों का झुरमुट
नम हो जाती हैं बिछुड़ती पलकें,
शायद ...
बिखरे झुरमुट को नम रखने के लिए !
.. विजय जयाड़ा 04.06.15
Friday 14 August 2015
Wednesday 12 August 2015
साज
(__ साज __)
कुदरत की
अठखेलियाँ___
सुर निबद्ध
करता है साज
सुप्त ह्रदय
झंकृत कर
जगाता है साज___
कभी आग तो
कभी पानी
बरसाता है साज
दिलों को
धड़काता और
मिलाता है साज___
बंद लबों को
बुदबुदाता है साज
कभी गुनगुनाते
लबों को
मौन करता है साज___
रौद्र होता
तो कभी
शालीन हो जाता साज
कभी रणभेरी
तो कभी
मृदुल धुन
सुनाता है साज___
कभी मिलन है
तो कभी
विरह है साज
कभी दिन है
तो कभी
रात है साज___
माँ की लोरी,
दादी की
कहानी है साज
कभी कोयल
तो नदिया
बन जाता है साज___
ताउम्र सरगम
सुनाता है साज
कभी ऊँचे
कभी नीचे मध्यम
स्वर सुनाता है साज___
बुजुर्गों की
लाठी___
बनता है साज
कभी बुजुर्गो का
आशीर्वाद___
बन जाता है साज__
हँसाता रुलाता
दोनो ही साज,
गुदगुदाता बहलाता
नचाता है साज___
संवेदनाओं का सुर,
संस्कृति का
दर्पण है साज,
कुदरत को
सरगम में__
सजाता है साज__
जीवन से पहले
बाद में भी साज
धरती की गहराई
अनंत ऊंचाइयों में साज ___
.....विजय जयाड़ा 21.02.15
ला पिला दे साकिया पैमाना पैमाने के बाद
ला पिला दे साकिया पैमाना पैमाने के बाद
पंकज उदास साहब द्वारा गाई गयी यह गजल मुझे बहुत पसंद है सोचा ब्लॉग पर पोस्ट कर दूँ .. कुछ इस रचना के रचनाकार को मस्त कलकत्तवी, कुछ ज़फर गोरखपुरी कुछ मुमताज राशिद मानते हैं
ला पिला दे साकिया पैमाना पैमाने के बाद
होश की बातें करूंगा, होश में आने के बाद
दिल मेरा लेने की खातिर, मिन्नतें क्या क्या न कीं
कैसे नज़रें फेर लीं, मतलब निकल जाने के बाद
वक्त सारी ज़िन्दगी में, दो ही गुज़रे हैं कठिन
इक तेरे आने से पहले, इक तेरे जाने के बाद
सुर्ख रूह होता है इंसां, ठोकरें खाने के बाद
रंग लाती है हिना, पत्थर पे पिस जाने के बाद
--मुमताज़ राशिद
Monday 10 August 2015
Saturday 8 August 2015
धरती मेरे देश की
_\\ धरती मेरे देश की //_
विविध धर्मों के फूल
खिले हैं
बहुरंगी धरती मेरे देश की,
झरने पर्वत बहती नदियाँ
प्यारी धरती मेरे देश की ....
विविध धर्मों के ....... 2
जगत कल्याणी अवतार प्रसूता
वीरों की जननी धरती मेरे देश की,
संत फकीर सूफियों से सेवित
रत्नगर्भा धरती मेरे देश की....
विविध धर्मों के ........ 2
चरण पखारता हिन्द महासागर
मुकुट हिमालय डटा हुआ,
पूरब पश्चिम........ वंदन करता
सतरंगी धरती मेरे देश की ....
विविध धर्मों के .........2
बहुरंगी धरती मेरे देश की,
झरने पर्वत बहती नदियाँ
प्यारी धरती मेरे देश की ....
विविध धर्मों के ....... 2
जगत कल्याणी अवतार प्रसूता
वीरों की जननी धरती मेरे देश की,
संत फकीर सूफियों से सेवित
रत्नगर्भा धरती मेरे देश की....
विविध धर्मों के ........ 2
चरण पखारता हिन्द महासागर
मुकुट हिमालय डटा हुआ,
पूरब पश्चिम........ वंदन करता
सतरंगी धरती मेरे देश की ....
विविध धर्मों के .........2
हर दिन उत्सव
खेले मेले हैं
खलिहान अनाजों से भरे हुए,
इस धरती पर मिलजुल सब रहते
खलिहान अनाजों से भरे हुए,
इस धरती पर मिलजुल सब रहते
शस्य-स्यामल, धरती मेरे देश
की..
विविध धर्मों के ........2
प्यारी दुनिया में सबसे प्यारा भारत
हम जय बोलो भारत महान की,
जयकारा ..भारत माता का
विविध धर्मों के ........2
प्यारी दुनिया में सबसे प्यारा भारत
हम जय बोलो भारत महान की,
जयकारा ..भारत माता का
जय .भारत भूमि महान
की... 2
Friday 7 August 2015
Tuesday 4 August 2015
कृतज्ञता
कृतज्ञता
माली सींचे सौ घड़ा ॠतु आये फल होय।।
रेडियो आस्ट्रेलिया पर ऐतिहासिक स्थलों पर आधारित मेरे आलेखों व साक्षात्कार के प्रसारण उपरांत, रचना का प्रकाशन सुखद अनुभूति प्रदान कर रहा है।
मैं स्वलिखित रचनाओं को प्रकाशित होने हेतु नहीं भेजता, न्यू एनर्जी स्टेट, साप्ताहिक पत्र के संपादक मंडल का तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ कि उन्होंने स्वयं ही मेरी रचना को फेसबुक से, अपने पत्र में स्थान देकर मेरा उत्साहवर्धन किया। न्यू एनर्जी स्टेट, पत्र परिवार का हार्दिक आभार..
प्रकाशित रचना____
साहिल पर मुन्तजिर हैं
ख्वाइश-ए-दीदार हम
कभी तो लहर आएगी
तपते हैं.......धूप में हम
अरमान... कम नहीं हैं
जुनूँ भी है इधर.. बहुत
मंजिल.... पास आयेगी
हसरत में फिरते हैं हम।
... विजय जयाड़ा
Saturday 1 August 2015
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