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Monday 29 August 2016

फेरी वाला



इण्डिया गेट पर एक स्वाभिमानी के उद्गार ___

--फेरी वाला--

लाचार नहीं !
स्वाभिमानी हूँ
मौसम से बेपरवाह
चिलचिलाती धूप में
अपनी गृहस्थी का बोझ
अपने कन्धों पर उठाता हूँ 
मुझे देखकर
हमदर्दी न जताना 
  मेरे दोनों हाथ__
बेशक नहीं !
दूसरों की तरह
मैं भी फेरी लगाता हूँ
स्वाभिमान से जीता हूँ
अपनी गृहस्थी का बोझ
खुद उठाता हूँ
 मनचाहा दिखे !
मेरे थैले से निकाल लेना
यकीन करना !
निराश नहीं करूँगा
वाजिब दाम लगाऊँगा
उचित लगे ! खरीद लेना
थैले में पैसे डाल देना
   मगर___
बेबस न समझना
मुझे देखकर
   हमदर्दी न जताना !!
स्वाभिमानी हूँ
अपनी गृहस्थी का बोझ
अपने कन्धों पर उठाता हूँ
मुझे किसी से शिकायत नहीं
फेरी लगाना
मेरी मजबूरी भी नहीं !
 पेशा है मेरा !
इंडिया गेट पर फेरी लगाता हूँ
       फेरीवाला कहलाता हूँ  ....
... विजय जयाड़ा

बादलों का समन्दर




~बादलों का समन्दर~

रूई सी नर्म
फाहों को उठकर
बादल बनते मैंने देखा
अनेक से एक___
हुए जब बादल
लहराता समन्दर देखा !
दूर दूर से बादल आते
झूमते हाथी जैसे दिखते
बादलों से
ऊपर जाकर तब
बादलों का समन्दर देखा !
उठती जल वाष्प
धरती से ऊपर
व्यष्टि को समष्टि होते देखा
उड़ते बादल
जब जब मिलते
बिछड़ों का आलिंगन देखा
उमड़ घुमड़
मस्ती में लहराता
अजब एक समन्दर देखा !
मणिकूट
पर्वत पर बैठा
उजला घना समन्दर देखा !
धरती से ऊपर__
नील गगन के नीचे
उड़ता नर्म बिछौना देखा
नर्म बिछौने
में जा बैठूँ
सपना एक सलौना देखा !
बादल बरसे
तन्द्रा टूटी
विहित में निहित समाहित देखा
प्यास बुझाने
आया सबकी
बादलों का समन्दर देखा !!

... विजय जयाड़ा 


     मेरे छुटकु कैमरे से बादलों के लहराते-बलखाते दूर तक फैले बादलों के समंदर की रोमांचक तस्वीर मणिकूट पर्वत, कोठार गाँव, ऋषिकेश, से ली गयी है

खँडहर बयाँ करते हैं ....



खँडहर बयाँ करते हैं
बीते जमाने की कहानी
बादशाह रहा न रियाया
  हुई ख़त्म कहानी !
चार दिन का मेला है
दुनिया ये जिंदगानी
   क्यों करते हैं नफरत....
   क्यों करते बेईमानी !!

..... विजय जयाड़ा


सूर्योदय !!




 सूर्योदय !!

आज भी सूरज
पूरब से ही उदय हुआ
मगर सूर्योदय पर
दो वाक् वीरों में
जमकर द्वंद्व हुआ !
पहला अड़ा___
सूरज दक्षिण से उदय हुआ
दूसरे ने कहा___
उत्तर में सूर्योदय हुआ !
उसी गाँव के ग्रामीण का
तभी उधर से गुजरना हुआ
दोनों वाक् वीरों के
प्रश्न का रुख
अब उसकी तरफ हुआ
वाक् वीरों के तेवर देख
सच जानते हुए भी
ग्रामीण भ्रमित हुआ !!
उसने अनभिज्ञता
कुछ यूँ जताई
इस गाँव में नया हूँ
यहाँ की सूर्योदय दिशा का
मुझे ज्ञान नहीं है भाई !
अब गुजारिश आपसे है__
ऐसे वाक् वीर कौन हैं
जो भ्रमित करते हैं समाज को
ये भी बतलाइए !!
छद्म अज्ञानी ग्रामीण कौन हैं
सत्य क्यों मौन हैं !!

Saturday 20 August 2016

सूर्यास्त




सूर्यास्त

क्षितिज का
आँचल पकड़ने
अब चला वो
दिवस प्रहरी
स्वर्ण घट
ज्यों ज्यों उतरता
विहग नीड़
अपने पहुँचता,
बाहें लहराता
खड़ा था अब तक
अडिग शिखर
सेनापति देवदारु,
सघन हरीतिमा
उल्लासमय था
    शांत-श्याम__
   क्यों हुआ देवदारु !!


.... विजय जयाड़ा
कोटी-कनासर, जौनसार बावर, देहरादून में सघन देवदार वृक्ष वन की ओट से सूर्यास्त का नजारा ...


Friday 19 August 2016

विस्तृत धरा ..



विस्तृत धरा
अनंत गगन
  ठहर रे मन !
 बुझ पाएगी यही
  अंतस की अगन ..

... विजय जयाड़ा


सड़क




सड़क

ऊंची नीची कच्ची पक्की
ऊबड़ - खाबड़
कहीं संकरी__
कहीं चौड़ी सड़क पर
कभी संभलकर
कभी सरपट दौड़ते हैं
दो राहे तिराहे चौराहे
संशय में डालते हैं
पूछते पुछाते
सावधानी बरतते
हम आगे बढ़ जाते हैं
किसी सड़क से
क्यों परहेज !
आज नहीं तो कल
जानी अनजानी सड़क को
मंजिल तक का
हमसफ़र बनना है
मंजिल तक पहुंचाना है
इसलिए मुझे
ऊंची नीची, कच्ची पक्की
संकरी चौड़ी, उबड़ खाबड़
हर सड़क से मुहब्बत है
मगर___
घर तक पहुंचाती है
जो सड़क !
उससे मुझे बेपनाह मुहब्बत है..

..... विजय जयाड़ा


Thursday 4 August 2016

हरी - भरी....वसुंधरा !



 हरी - भरी....वसुंधरा !
   चमन खिला - खिला !!
महकती फिजाओं से
     मन आकर यहाँ मिला .....


प्रवाह



> प्रवाह <

धरती हो जाए
   मरुभूमि !!
कैक्टस उग आयेंगे
   कांटें__
  उनसे जुदा नहीं !
   सबको सतायेंगे !!
चाहत हो गुलाब की
धरती को
खाद पानी चाहिए
    मस्तिष्क__
  बनने न पाए मरुभूमि !
   निरंतर ___
     विचार प्रवाह चाहिए ...


.. विजय जयाड़ा


उनके मुरझाये लब



उनके मुरझाये लब लाचारी बयाँ करते हैं,
होंठ सुर्ख होंते हैं तो मिजाज बदल जाते हैं !
.... विजय जयाड़ा

पत्थरों के भी अपने मजहब होते,




राह चलते, खेत में धान रोपाई के बाद दोपहर की चिलचिलाती गर्मी में पत्थर की आड़ लेकर भोजन करते परिवार को देखकर सोचता हूँ...
काश ! पत्थरों के भी अपने मजहब होते,
तो दैर-ओ-हरम की दीवारों के नज़ारे कुछ अलग होते !!
... विजय जयाड़ा
(दैर-ओ-हरम= मंदिर-मस्जिद आदि इबादत खाने)

भावातिरेक में अंतर्मन



भावातिरेक में अंतर्मन
शब्दों को टटोलता है,
शब्दों का कुनबा तब
अंतस में गुम जाता है !
... विजय जयाड़ा