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Sunday, 19 August 2018

हिमालय से उतरकर



हिमालय से उतरकर
हिमालय से उतरकर आया मैं
अथक निरंतर चलता मैं
लरजता मैं गरजता मैं
अविरल अविराम बहता हूँ मैं .....
तट हैं निरंतर साथ मेरे
प्यासे आते पास मेरे
मैं पथिकों का सहारा हूँ
चिर पथ का अनथक पथिक हूँ मैं
हिमालय से उतरकर आया मैं
अविरल अविराम बहता हूँ मैं...
दिवस निशा नहीं थाह मुझे
न किसी से यहाँ मोह मुझे
इक दूजे में भेद न कर
सुख दुःख में सबके साथ हूँ मैं
हिमालय से उतरकर आया मैं
अविरल अविराम बहता हूँ मैं ...
बाँध दिया बंधों में मुझको
नादानी पर इतराते हो
अल्हड बहना चाह मेरी
प्रकोप से फिर क्यों डरते हो
हिमालय से उतरकर आया मैं
अविरल अविराम बहता हूँ मैं__
लरजता मैं गरजता मैं
अविरल अविराम बहता हूँ मैं .....
... अनहद


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