प्रपात
गिरि शिखरों से.....
उतर उतर
नग्न पाषाणों से टकराकर
अविरल निर्मल
झर झर झरता वह प्रपात..
उतर उतर
नग्न पाषाणों से टकराकर
अविरल निर्मल
झर झर झरता वह प्रपात..
ना भटक भटक...
ना अटक अटक
ना बहकना ही मंजूर उसे
उद्गम अंत का भान नहीं
संभाव से झरता वह प्रपात...
ना अटक अटक
ना बहकना ही मंजूर उसे
उद्गम अंत का भान नहीं
संभाव से झरता वह प्रपात...
दिवस निशा निसि....
बहता वह
कल कल छल छल करता वह
शीतल रमण मनोरम अनहद
रमता संन्यासी धवल वह प्रपात...
बहता वह
कल कल छल छल करता वह
शीतल रमण मनोरम अनहद
रमता संन्यासी धवल वह प्रपात...
तन मृदुल चित...
निर्विकार
मन भेद न कोई प्रतिकार
आघातित तन मगर सहज गति
रुनझुन रुनझुन गीत वह प्रपात....
.... अनहद
निर्विकार
मन भेद न कोई प्रतिकार
आघातित तन मगर सहज गति
रुनझुन रुनझुन गीत वह प्रपात....
.... अनहद
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