लहराती
खुशियाँ
ठहरना
नहीं !
बरसना नहीं !
तो क्यों उमड़ घुमड़
चले आते हैं
ये बादल !
दो चार छींटे डालकर
सूखी धरती को बहलाकर
क्यों बैचैन कर जाते हैं
ये बादल !
बरसों !
ठहरकर
मन भरकर कर बरसों
तब तक बरसो !
जब तक
धरती का मटियाला
धूसरित आंचल
हरियाला होकर न
लहराने लगे
बरसों बाद परदेश गए
बेटे के घर लौट आने पर
मां के मन में
लहराती खुशियों की तरह ...
... अनहद
बरसना नहीं !
तो क्यों उमड़ घुमड़
चले आते हैं
ये बादल !
दो चार छींटे डालकर
सूखी धरती को बहलाकर
क्यों बैचैन कर जाते हैं
ये बादल !
बरसों !
ठहरकर
मन भरकर कर बरसों
तब तक बरसो !
जब तक
धरती का मटियाला
धूसरित आंचल
हरियाला होकर न
लहराने लगे
बरसों बाद परदेश गए
बेटे के घर लौट आने पर
मां के मन में
लहराती खुशियों की तरह ...
... अनहद
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