ad.

Sunday, 19 August 2018

कैक्टस !




कैक्टस !

संवेदनाएं जब 
रेगिस्तान हो जाती है
सम्बन्धों के उपवन में
कंटीली झाड़ियां..
खरपतवार !
उग आती है 
तब दूर...
मजबूत खड़ा
उपेक्षित कैक्टस
कुछ सुकून देता है
कैक्टस !
अपने स्वभाव को 
खुद को...
नहीं बदलता
सम्बन्धों की नित नई
परिभाषाएं नहीं गढ़ता 
हर मौसम में
एक सा रहता है
हरियल कैक्टस !
छोटे ही सही 
कांटों के बीच ही सही
खूबसूरत सुर्ख.... 
पुष्प लिए होता है कैक्टस ....
..... अनहद



No comments:

Post a Comment