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Saturday, 18 August 2018

यादों का कारवां




यादों का कारवां

कुर्सी पर
पसरा ही था कि
यकायक !
यादों का कारवां
पास से गुज़र गया
अपने पीछे 
यादों का गुबार छोड़ता 
आगे बढ़ गया..
शो केस में रखी 
धूसर हांडी लगी
गुमसुम बैठी लालटेन 
अब लजाती शर्माती
खुद पर इतराती
रोशनी बिखेरने लगी
शो केस में ही रखा
सन सत्तर में जन्मा
उम्र से पहले ही
दम तोड़ चुका
बिन पैरहन रेडियो 
जीवंत हो..... 
अब कुलबुलाने लगा
रेडियो से उठती स्वर लहरियां
फौजी भाइयों के 
फरमाइशी कार्यक्रम "जयमाला" के 
गीतों में लिपटकर
कानों को गुदगुदाने लगी
एक के बाद एक
कुलाचें मारती यादें
जीवंत हो
सामने आने लगी
लेकिन कितनी देर ?
मुझे आगे बढ़ना था
वक़्त की रफ्तार के साथ
तालमेल बिठाना था !
यादों का गुबार थम गया
सब शांत हो गया
गुमसुम लालटेन संग
मायूस रेडियो 
शो केस में सिमट गया 
यादों के कारवां में 
नई यादों को जोड़ने
अतीत को खंगालकर.... 
वर्तमान से जोड़ने...
मैं आगे बढ़ गया.

....
अनहद



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