गंगा
युगों - युगों से बहती अविरल
तन मन कर देती है विह्वल
बढ़ता पथिक तब थम जाता है
दिखती है जब गंगा निर्मल ...
तन मन कर देती है विह्वल
बढ़ता पथिक तब थम जाता है
दिखती है जब गंगा निर्मल ...
दिवस निशा समय हो कोई
हरपल जीवन गीत सुनाती
ऋतु बेशक हो चाहे कोई
अपनी धुन में गाती जाती ...
हरपल जीवन गीत सुनाती
ऋतु बेशक हो चाहे कोई
अपनी धुन में गाती जाती ...
गोद में जड़ चेतन उसके
मुदित प्रफुल्लित शीतल शीतल
टकराती नित पाषाणों से
बहती फिर भी कल कल छल छल
मुदित प्रफुल्लित शीतल शीतल
टकराती नित पाषाणों से
बहती फिर भी कल कल छल छल
गति बाधाओं में भी निरंतर
भेद भाव न कोई कमतर
बलखाती बहती वो निश्छल
कल-कल छल-छल कल-कल छल-छल ...
... अनहद
भेद भाव न कोई कमतर
बलखाती बहती वो निश्छल
कल-कल छल-छल कल-कल छल-छल ...
... अनहद
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