थाह
विस्तृत जल है पास बहुत
गगन अनंत सिर ऊपर है
उड़ने की चाह भी मन में है
फिर किसने विहग को रोका है
गगन अनंत सिर ऊपर है
उड़ने की चाह भी मन में है
फिर किसने विहग को रोका है
फैलाता पंख उड़ने को
पल में इरादा बदलता है
उलझा है वो उलझन में !
मन मसोस रह जाता है
पल में इरादा बदलता है
उलझा है वो उलझन में !
मन मसोस रह जाता है
उड़ जाऊं या रुकूं यहीं !
सोच सोच रुक जाता है
मीन की चाह में बार बार
मन बहला कर थम जाता है ..
सोच सोच रुक जाता है
मीन की चाह में बार बार
मन बहला कर थम जाता है ..
हुई न चाह अब तक पूरी
बैठा बैठा थक जाता है
टुकुर-टुकुर तकते तकते
पास कहीं सो जाता है..
... अनहद
बैठा बैठा थक जाता है
टुकुर-टुकुर तकते तकते
पास कहीं सो जाता है..
... अनहद
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