दिन चार.....
दिन चार बसंत छलावा है
ग्रीष्म शिशिर में भेद न कर
दुनिया एक छलावा है
एक -दूजे में तू भेद न कर ...2
जीवन के सफर में हमराही
बहुत मिले और बिछुड़ गए
सदा साथ दिया किसने !
निर्लिप्त रह विषय भोग तू कर...2
जीवन पूनम का चाँद यहाँ
अमावस निश्चित आनी है
सिमटे पूनम न व्यर्थ यूँ ही
निज जीवन को सार्थक तू कर ...2
दिन चार बसंत छलावा है
ग्रीष्म शिशिर में भेद न कर
दुनिया एक छलावा है
एक - दूजे में भेद न कर.. 2
.. अनहद
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