जीवन सफर !
हर मौसम का सफर !
चलना है
सुबह शाम
दिन और रात
कभी थूप कभी छाँव
गर्मी सर्दी और बरसात,
कभी अजनबी
हमसफ़र बन जाते हैं
कभी करीबी
अकेला छोड़ जाते हैं !
मगर___
कुछ लोग
करीब रह कर
झूठे अहसासों के
ताने बाने से
बुनते हैं
सब्ज बागों के तिलिस्म !
टूटते हैं___
जब ये तिलिस्म !
उम्मीदों के पहाड़
भरभरा कर
गिर जाते हैं !
जमींदोज हो जाते हैं !!
चलना है
सुबह शाम
दिन और रात
कभी थूप कभी छाँव
गर्मी सर्दी और बरसात,
कभी अजनबी
हमसफ़र बन जाते हैं
कभी करीबी
अकेला छोड़ जाते हैं !
मगर___
कुछ लोग
करीब रह कर
झूठे अहसासों के
ताने बाने से
बुनते हैं
सब्ज बागों के तिलिस्म !
टूटते हैं___
जब ये तिलिस्म !
उम्मीदों के पहाड़
भरभरा कर
गिर जाते हैं !
जमींदोज हो जाते हैं !!
.. विजय जयाड़ा
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