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Wednesday, 6 July 2016

जीवन सफर !



 जीवन सफर !

हर मौसम का सफर !
चलना है
सुबह शाम
दिन और रात
कभी थूप कभी छाँव
गर्मी सर्दी और बरसात,
कभी अजनबी
हमसफ़र बन जाते हैं
कभी करीबी
  अकेला छोड़ जाते हैं !
    मगर___
कुछ लोग
करीब रह कर
झूठे अहसासों के
ताने बाने से
बुनते हैं
सब्ज बागों के तिलिस्म !
      टूटते हैं___
  जब ये तिलिस्म !
उम्मीदों के पहाड़
भरभरा कर
गिर जाते हैं !
   जमींदोज हो जाते हैं !!

.. विजय जयाड़ा

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