इंतज़ार !
दिनभर हाड तोड़
मेहनत के बाद यूँ आँख लगी
उसे पता ही न चला !
कब टूटे शीशे पर चिपके
अख़बार को उखाड़
बर्फीली हवाओं और
चांदनी के दूधिया उजाले ने
कमरे पर कब्ज़ा जमा लिया !
अनायास आँख खुली !!
दोनों मिलकर न जाने कब से
उसे जगाने की कोशिश में थे
निखरी चांदनी में
पेड़ों से उतर आये साए
अब वापसी पर थे
गुदगुदाती दूधिया चांदनी को
निहारता वो सोचता रहा..
सौन्दर्य देख अभिभूत हो
कोई काव्य लिख रहा होगा..
प्रेमालाप में रत होगा प्रेमी युगल
कोई प्रेम गीत में होगा मगन ..
एकाएक तन्द्रा टूटी
जैसे उसे कुछ याद आया !!
उखड़े अखबार को
झट से चिपका कर
कम्बल सिर तक खींच सो गया !
अब न जबरदस्ती घुस आयी
चांदनी का दूधिया उजाला था
न ही बर्फीली हवाओं की चुभन
बस था तो केवल अँधेरा और
नयी सुबह का इंतज़ार
सूरज के उजाले में भी ..
चांदनी के दूधिया गुदगुदाते
सौंदर्य स्पर्श का इंतज़ार...
आखिर क्यों न हो उसे कल का इंतज़ार
तभी वो गीत गुनगुना पायेगा !
जब कल उसे काम मिल पायेगा !!!
मेहनत के बाद यूँ आँख लगी
उसे पता ही न चला !
कब टूटे शीशे पर चिपके
अख़बार को उखाड़
बर्फीली हवाओं और
चांदनी के दूधिया उजाले ने
कमरे पर कब्ज़ा जमा लिया !
अनायास आँख खुली !!
दोनों मिलकर न जाने कब से
उसे जगाने की कोशिश में थे
निखरी चांदनी में
पेड़ों से उतर आये साए
अब वापसी पर थे
गुदगुदाती दूधिया चांदनी को
निहारता वो सोचता रहा..
सौन्दर्य देख अभिभूत हो
कोई काव्य लिख रहा होगा..
प्रेमालाप में रत होगा प्रेमी युगल
कोई प्रेम गीत में होगा मगन ..
एकाएक तन्द्रा टूटी
जैसे उसे कुछ याद आया !!
उखड़े अखबार को
झट से चिपका कर
कम्बल सिर तक खींच सो गया !
अब न जबरदस्ती घुस आयी
चांदनी का दूधिया उजाला था
न ही बर्फीली हवाओं की चुभन
बस था तो केवल अँधेरा और
नयी सुबह का इंतज़ार
सूरज के उजाले में भी ..
चांदनी के दूधिया गुदगुदाते
सौंदर्य स्पर्श का इंतज़ार...
आखिर क्यों न हो उसे कल का इंतज़ार
तभी वो गीत गुनगुना पायेगा !
जब कल उसे काम मिल पायेगा !!!
..विजय जयाड़ा
No comments:
Post a Comment