अनुभूति
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Tuesday, 13 October 2015
परवाज़ परिंदों की भी एक हद में ही रह जाए ...
परवाज़ परिंदों की भी एक हद में ही रह जाए
अगर आसमान भी परिंदों में आपस में बंट जाए !
क्यों सरहद बनी जो बांटती है दिलों और मुल्कों को
काश !! हर इंसान भी सरहद छोड़ कर परिंदा हो जाए !!
.. विजय जयाड़ा 13.10.15
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