आज सुबह मित्र से "उठाईगीरों" द्वारा रचना के साथ मूल रचनाकार का नाम उद्धृत न कर या मूल रचनाकार का नाम ज्ञात न होने पर, रचनाकार को "अज्ञात" उद्धृत न करके, स्वयं दोनों हाथों से दाद बटोरने पर चर्चा हो रही थी. बस यूँ ही एक मनोभावों की ऊंची लहर उठी !! भाव लहर को शब्द रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की है ..
पसीने के रंग लाने पर
फूल महकाते हैं चमन को,
तारीफ़ फूलों की होती है
कौन पूछता है माली को !
फूल महकाते हैं चमन को,
तारीफ़ फूलों की होती है
कौन पूछता है माली को !
उठाईगीर बहुत हैं और
सेंधमारी भी खूब है यहाँ,
गुमनामी में हैं कलमकार
दाद बटोरते हैं दूसरे यहाँ !!
.. विजय जयाड़ा 02.10.15
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