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Thursday, 1 October 2015

बोध !!


बोध !!

 झील से नयन उसके
  घनी घटायें केश हैं ,
  चाल उसकी हिरनी सी..
  होष्ठ हैं गुलाब से ..
पुष्ट यौवन मस्ती भरा
शर्माता बलखाता हुआ,
  सराहना सृजन की है !
या पाने को
  चढ़ता एक नशा !
   प्रकटन ..
मनोदशा का है या ..
  प्रश्न ! संस्कारों से जुड़ा !!
कोई पोषता पुष्प को,
  खिलते खुश होता सदा ..
कोई तोड़
   फेंक देता सड़क पर !!
विकृत कर
   खुश होता है सदा !!
  हो दरस भाव ..
  वासना से पूरित ?
   या ..
  बोध हो !! सौंदर्य का ?

.. विजय जयाड़ा


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