---अनजान सफ़र---
हवाओं से मिल बूंदों ने
समंदर से दूर
उड़ जाने की रची,
अनजान सफ़र पर
उड़ा ले गयी हवाएं
ठौर बिन बूँदें नम हुई !
विरह में अकुलाई बहुत
बेचैन मन भारी हुआ
टकराई पहाड़ से झोंखा बन,
द्रवित हो___
तपती धरती पर बिखरकर
अनजान सफ़र का अंत हुआ !!
.. विजय जयाड़ा
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