ad.

Friday, 23 October 2015

अनजान सफर


---अनजान सफ़र---

हवाओं से मिल बूंदों ने
समंदर से दूर
  उड़ जाने की रची,
अनजान सफ़र पर
उड़ा ले गयी हवाएं
  ठौर बिन बूँदें नम हुई !
विरह में अकुलाई बहुत
बेचैन मन भारी हुआ
टकराई पहाड़ से झोंखा बन,
     द्रवित हो___
तपती धरती पर बिखरकर
   अनजान सफ़र का अंत हुआ !! 


.. विजय जयाड़ा



No comments:

Post a Comment