सरहद !
नफरतें फैलाती हैं
काँटों से क्यों बंधी है ये सरहद,
बंदूकों के साए में ही
क्यों पनपती हैं ये सरहद !!
क्यों दीखता नही,
दरिया का किनारा सा ये सरहद !!
संगम दो तहजीबों का
क्यों बन जाती नहीं ये सरहद !!
सन्नाटे परोसती हैं .....
अठखेलियाँ क्यों करती नही ये सरहद !!
गुलिस्तां-ए-अमन-ओ-चैन
क्यों खिलने देती नहीं ये सरहद !!
काँटों से क्यों बंधी है ये सरहद,
बंदूकों के साए में ही
क्यों पनपती हैं ये सरहद !!
क्यों दीखता नही,
दरिया का किनारा सा ये सरहद !!
संगम दो तहजीबों का
क्यों बन जाती नहीं ये सरहद !!
सन्नाटे परोसती हैं .....
अठखेलियाँ क्यों करती नही ये सरहद !!
गुलिस्तां-ए-अमन-ओ-चैन
क्यों खिलने देती नहीं ये सरहद !!
^^ विजय जयाड़ा
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