अनुभूति
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Tuesday, 6 October 2015
दरस
दरस !!
झील से
नयन उसके ...
घनी घटायें
केश हैं ..
चाल
उसकी
हिरनी सी
और
होष्ठ हैं
गुलाब से ..
पुष्ट
यौवन...
गदराया हुआ ..
मस्त और
मदमाता हुआ....
दरस है !!
देहयष्टि का,
वासना से पूरित !!
या
बोध है !! सौंदर्य का !!
विजय जयाड़ा
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