बुढ़ापा
हरा दरख्त
परिंदों का था बसेरा,
सुख दुःख
हर मौसम में
सबका वहीँ रहता डेरा,
कोई किसी डाल पर
चोटी पर कोई इठलाता,
चह-चहाटों से सारा
चमन गूंजता ,
बूढा हुआ दरख़्त !!
पत्तियों ने छोड़ा
परिंदों ने भी छोड़ा !!!
दरख़्त वही
बगीचा भी वही,
जो था सहारा,
वही बेगाना हुआ !!
सूनी हुई शाखें
जर्जर हुई काया,
खोया है खुद में
सिमटी टहनियां,
बूढ़ी लाचार निगाहों से
बेबस सा ....
परिंदों का था बसेरा,
सुख दुःख
हर मौसम में
सबका वहीँ रहता डेरा,
कोई किसी डाल पर
चोटी पर कोई इठलाता,
चह-चहाटों से सारा
चमन गूंजता ,
बूढा हुआ दरख़्त !!
पत्तियों ने छोड़ा
परिंदों ने भी छोड़ा !!!
दरख़्त वही
बगीचा भी वही,
जो था सहारा,
वही बेगाना हुआ !!
सूनी हुई शाखें
जर्जर हुई काया,
खोया है खुद में
सिमटी टहनियां,
बूढ़ी लाचार निगाहों से
बेबस सा ....
खोजता है सहारा !!
^^ विजय जयाड़ा
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