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Monday, 12 October 2015

ख्वाइश


..... ख्वाइश ...

डाल से टूटा है तो
अब बिखर ही जाएगा !
बहा ले जिस तरफ पानी
बहता ही जाएगा !
शाख पर था
हवा में गीत गाता था
थके राही को चादर
छाँव की ओढाता था,
डाल से टूटा है अब
बिखरना नियति है उसकी
मगर बिखरने से पहले
सहारा बन पाए __
ख्वाइश अब भी है उसकी !!

विजय जयाड़ा 
12.10.15


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