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Monday, 5 October 2015

सियासत !!


सियासत !!

बचना इन सय्यादों से
  फकीरों के लिबास में होते हैं !!
बचना इनकी फितरतों से
   रहमतों में भी चलाते तीर हैं !!

अमन के अलफ़ाज़ हैं
   इन्होंने उधार लिए हुए !!
असल होते हैं तब ये
   गोला-बारूद उगलते हैं !!

फरिश्तों के वेश में ही
ये अक्सर निकलते हैं,
बगिया का बन के माली
   खुद ही उजाड़ देते हैं !!

जख्म देते हैं फिर
जहरीला मलहम लगाते हैं !
इंसानियत से वास्ता नहीं
   लाशों पे सियासी फूल चढाते हैं !!!

^^ विजय जयाड़ा

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