अनुभूति
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Tuesday 8 December 2015
घायल बीर बिराजहिं कैसे।
पर्णरहित सेमल पर रक्तवर्ण पुष्प देखकर मानस का एक प्रसंग याद आ गया ....
घायल बीर बिराजहिं कैसे।
कुसुमित किंसुक के तरु जैसे।।
लछिमन मेघनाद द्वौ जोधा।
भिरहिं परस्पर करि अति क्रोधा।।
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