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Thursday 3 December 2015

अंतर्मन



अनायास ही गुदगुदाते लम्हे ....

 
                     अपनी रचनाओं को प्रकाशन के उद्देश्य से समाचार पत्र या पत्रिका में नहीं भेजता। लेकिन ...
शुक्रगुजार हूँ, संपादक श्री गणेश जुयाल जी व साप्ताहिक पत्र " न्यू एनर्जी स्टेट " परिवार का, कि वो मेरी रचनाओं को फेसबुक से ही चयनित कर प्रकाशन योग्य मानकर मेरा उत्साहवर्धन करते हैं।
                   पत्र में मेरी रचना "अन्तर्मन " को स्थान देने हेतु " न्यू एनर्जी स्टेट " साप्ताहिक पत्र परिवार का हार्दिक धन्यवाद।

।।अंतर्मन ।।

गऊ सानिध्य
न मिल पाना
महानगरीय मजबूरी है
लेकिन ___
कोई ये मान न ले
गऊ से हमारी दूरी है !
धर्म ग्रन्थों ने मिलकर
गऊ का महत्व
स्वीकारा है
फिर गऊ पर क्यों !!
होता इतना हंगामा है !!

दूध पिया
जननी का हमने
ममता का माँ हम नाम धरें
दूध पिया
गौ का भी हमने
क्यों ममता से इनकार करें !!

इंसान को दूध
पिलाया गऊ ने
मजहब का नहीं भेद किया,
फिर हमने
गऊ को आपस में
मजहब में क्यों बाँट दिया !!

बहुत हुई
गौ धन पर सियासत !!
इस पर अब लगाम करें,
दूध का कर्ज
अन्तर्मन से चुकाएँ___
जीवन अपना धन्य करें...

... विजय जयाड़ा

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