खामोशी
परत दर परत
यादों को खुद में छिपाए
परतें उघडती हैं
धुंधलका छितराने लगता है
घने कुहरे को
सूरज का उजाला
निगलने लगता है
अब अतीत स्पष्ट
नज़र आने लगता है
खट्टी-मीठी यादें
जीवंत हो उठती हैं
गुदगुदाती हैं
जी भर हंसाती हैं
यादों का चलचित्र ज्यों-ज्यों
आगे बढ़ता जाता है
तेजी से कुछ
पीछे छूटता चला जाता है
परत दर परत
धुंध में फिर से
छिपने लगता है !!
तन्द्रा टूटती है ___
यादों के आगोश में समाते
आवरणित होते
अतीत को फिर पाने की
जीने की जिद में
मन मचलने लगता है
लेकिन ____
अतीत वापस नहीं आएगा !!
सोचकर !!
मन मायूस हो खामोशी ओढ़ लेता है !!
विजय जयाड़ा 12.12.15
यादों को खुद में छिपाए
परतें उघडती हैं
धुंधलका छितराने लगता है
घने कुहरे को
सूरज का उजाला
निगलने लगता है
अब अतीत स्पष्ट
नज़र आने लगता है
खट्टी-मीठी यादें
जीवंत हो उठती हैं
गुदगुदाती हैं
जी भर हंसाती हैं
यादों का चलचित्र ज्यों-ज्यों
आगे बढ़ता जाता है
तेजी से कुछ
पीछे छूटता चला जाता है
परत दर परत
धुंध में फिर से
छिपने लगता है !!
तन्द्रा टूटती है ___
यादों के आगोश में समाते
आवरणित होते
अतीत को फिर पाने की
जीने की जिद में
मन मचलने लगता है
लेकिन ____
अतीत वापस नहीं आएगा !!
सोचकर !!
मन मायूस हो खामोशी ओढ़ लेता है !!
विजय जयाड़ा 12.12.15
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