अनुभूति
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Thursday 3 December 2015
जीवन सत्य
... जीवन सत्य ....
शून्य से आगे बढ़ा
यौवन फिर वरण किया !
शून्य से तब हो विलग
उनमत्त हो विचरण किया !
जीर्ण फिर काया हुई
काल वो अंतिम पहर सा !
बिसरा दिया था तब जिसे
शून्य को .... स्वीकार किया !
.. विजय जयाड़ा 20.11.15
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