अनुभूति
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Friday 4 December 2015
प्रवाह
प्रवाह
भोला मासूम मृदुल जल
धरती के गर्भ से निकल
लम्बी यात्रा पर चल पड़ा
प्रवाहमय अविरल विकल
खार ही उसकी नियति है !
परवाह नहीं ना ही खबर
उसको तो बढ़ते जाना है
रूककर नहीं हो जाना मलिन ...
.. विजय जयाड़ा 04/12/15
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