|| सार्थक संवाद ||
व्यर्थ नहीं जाते
कुछ संवाद ...
दीवारों से टकराकर
घायल लौट आते हैं
कुछ समा जाते हैं
धरती के गर्भ में,
अनसुने संवाद
तलाशते हैं ठौर
अनंत आकाश में,
अनुकूल समय इंतजार में !!
वापसी की आस में,
करवट लेता है समय
लुके छिपे संवादो को
स्वीकारते हैं हम,
लौट आते हैं फिर वही
घायल, अनसुने
धरती में समाए संवाद !!
पुनर्जन्म लेते हैं
वही सुप्त पड़े संवाद,
फिर होता है
नए युग का सूत्रपात,
क्योंकि !!
व्यर्थ नहीं जाते कुछ संवाद ..
युग प्रवर्तक होते हैं
अनसुने, घायल
धरती मे समाये....
कुछ सार्थक संवाद !!
कुछ संवाद ...
दीवारों से टकराकर
घायल लौट आते हैं
कुछ समा जाते हैं
धरती के गर्भ में,
अनसुने संवाद
तलाशते हैं ठौर
अनंत आकाश में,
अनुकूल समय इंतजार में !!
वापसी की आस में,
करवट लेता है समय
लुके छिपे संवादो को
स्वीकारते हैं हम,
लौट आते हैं फिर वही
घायल, अनसुने
धरती में समाए संवाद !!
पुनर्जन्म लेते हैं
वही सुप्त पड़े संवाद,
फिर होता है
नए युग का सूत्रपात,
क्योंकि !!
व्यर्थ नहीं जाते कुछ संवाद ..
युग प्रवर्तक होते हैं
अनसुने, घायल
धरती मे समाये....
कुछ सार्थक संवाद !!
.. विजय जयाड़ा
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