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Wednesday, 30 September 2015

“ बुझदिली !! “


 बुझदिली !!

 कुदरत का कहर
   उसकी तकदीर में था गुंथा !!
बादलों से फिर बिजली गिरी
एक और सरसब्ज़ दरख़्त
  फिर धरती पर ढह गया !
  तफ्तीश और पूछताछ !
मौके मुआयना भी खूब हुआ
मगर नतीजे में बीमार
   बूढ़ा और सूखा ठहराया गया !!
खबर नवीसों को इल्म था
   दरख़्त के ढह जाने का !!
मगर !
   सियासती तकरीरों में मशगूल थे !!
    जिनमें उसको ....
   “बुझदिली” का तमगा पहनाया गया !!

.. विजय जयाड़ा 


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