खुद का अहसास
घनघोर अंधेरा
पसरा देख
मन व्यथित कर
घबरा जाते हैं !
नैराश्य भाव में
गल गल कर
अक्सर ..
समर्पण कर जाते हैं !
शूरवीर
कब रुकते है!
अक्सर अंधियारों से
वे घिरते हैं !
अंधेरों पर विजयी
ध्वजा फहरा कर ही
वे शूरवीर कहलाते हैं !
हवाओं से डर कर
दीपक की लौ
समर्पण करती नहीं !
अंधेरी रातों में ही
प्रकाशित होकर जुगनु
खुद का अहसास कराते हैं !!
पसरा देख
मन व्यथित कर
घबरा जाते हैं !
नैराश्य भाव में
गल गल कर
अक्सर ..
समर्पण कर जाते हैं !
शूरवीर
कब रुकते है!
अक्सर अंधियारों से
वे घिरते हैं !
अंधेरों पर विजयी
ध्वजा फहरा कर ही
वे शूरवीर कहलाते हैं !
हवाओं से डर कर
दीपक की लौ
समर्पण करती नहीं !
अंधेरी रातों में ही
प्रकाशित होकर जुगनु
खुद का अहसास कराते हैं !!
... विजय जयाड़ा
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