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Wednesday, 30 September 2015

पतझड़ से पहले


पतझड़ से पहले 

 बयार बही
चहुदिश महकी
झूमी डाली
तरुवर झूमे,
  कलरव विहग..
कुहुकी कोयल
इठलाई कलियाँ
  फूल हँसे...

तरुपात रजतमय
हरे खिले
हर्षित मृग
  ऊँची उछाल भरे,
अम्बर नीला-नीला सा
  वसुधा नव श्रृंगार किये,
भौंरा गूंजे इधर-उधर
   ठहर सुमन किसी ..
  मकरंद पान करे..

विरहिणी मन
   फिर कई प्रश्न उठे !!
कई फाग टले
   कई बसंत ढ़ले !!
   लौटेंगे कब !!
  पिया परदेश गए..
यौवन ढल कर
   या ....
   पतझड़ से पहले !! 

.. विजय जयाड़ा 


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