ad.

Sunday, 20 September 2015

स्नेह संवाद ......

 

.....स्नेह संवाद ......

धरती को जब छूता सूरज !!
तपती प्यासी धरती क्या करे !! .....
व्याकुल होते मूक जीवों का
धरती पर कौन ध्यान धरे !! .....
अपनी प्यास बुझाता मानव
जीवों का कौन थ्यान करे !! ......
मानव प्यास बुझाते ठंडे प्याऊं...
मीठा शरबत मानव में ही बंटे !!....
घर के बाग़-बगीचे सींचे हमने
गमलों का भी ध्यान धरा ...
हो गयी छुट्टी ! बंद हुए स्कूल !!
इन पौधों का कौन ध्यान करे ! .....
ठंडी हवा कूलर में बैठा
मन में एक भूचाल उठा .....
दौड़ पड़ा सुध लेने इनकी
व्याकुल कुम्हलाये उदास मिले !!
डाली और आंगन बैठे कागा भी ...
व्याकुल प्यासे निराश मिले !!....
रोटी के टुकड़े बिखराए
मिटटी कटोरा पानी भर रख कर
कागा टोली को शांत किया ..
घूँट-घूँट पानी पिलाकर
कुम्हलाये रूठे पौधों और ...
जीवों से सहज स्नेह संवाद किया.. 

.. विजय जयाड़ा


No comments:

Post a Comment