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Saturday, 26 September 2015

..अभिलाषा..


..अभिलाषा..

हे दयानिधे!
भावों में आ..
छल कपट से दूर
निरंतर कर्मों में....
कर्मपथ में आ.
हे करूणानिधि !
मिथ्या है जगत
ये सत्य है ...
मगर कण-कण में बसा
नियंता तू एक है
कर्म पथ से विचलन
मन चंचल
जब हो मेरा,
कर तिमिर अवसान..
गुरु बन मार्ग प्रशस्त कर .
हे भक्तवत्सल !!
भाव पूजा ही
समर्पण है चरणों में तेरे
भावरहित समर्पण
व्यवहार में नहीं मेरे,
कर विरक्त
मिथ्या आलंबनों से,
आडम्बरों से मोह भंग कर,
हे भक्तवत्सल !!
आलोकित कर ह्रदय....
ज्ञान-दीपक जला..
ह्रदय दीप जला !! 

.. विजय जयाड़ा

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