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Sunday, 20 September 2015

जी .. हुजूरी !!


जी .. हुजूरी !!

हम भी कभी थे
दुनिया के राजा..
चाँद सितारों पर भी
बजता था..
अपना ही बाजा..
बात मनवाना,
काम था अपना..
बड़े-बड़ों को
जिद्द पर झुकाना..
गलती अपनी,
दूसरे को उलाहना !
कल्पना में
 कहीं भी उड़ जाना !!
दोस्त बहुत थे
पक्के –पक्के
नाम अभी तक
याद हैं उनके..
लुक्कम छुप्पम
सांझ घनेरे
झगड़े बिना खेल
लगते थे अधूरे...
कंपाती सर्दी या
भीषण गर्मी,
मस्ती – मस्ती 
हरदम - हरदम,
 बारिश की..
परवाह नहीं थी,
बस्ता लटकाए
   छ्प्तम - छप्तम..
डाल पर चढ़
खूब इतराना,
 दोस्तों को.. 
  हर वक्त चिढाना !
अब सब हुआ
  गुजरा जमाना !!
रूठा बचपन
  बंद खिलखिलाना !!
दुनिया सिमटी,
 छिना राज पुराना !
मौज मस्ती का
 बीता जमाना !
दोस्तों की नहीं
अब अल्हड़ टोरी,
खेल है.. अब
  बस ..जी हुजूरी !!
खेल है.. अब
   बस...जी हुजूरी !!!

..विजय जयाड़ा 
 

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