दास्ताँ
मंद मंद पवन बहती
स्नेहिल सा ....
कुछ गाता है ये ,
सुकुमार नव पुष्प
दिखलाने की जिद में
झूमता ...
भीतर चला आता है ये !!
बतकही के मोह में
पास खींचा
चला जाता हूँ ...
जन्म से..
पुष्पित होने की
दास्ताँ सुनकर ..
कुछ पल को ...
इसमें ही रम जाता हूँ ..
.. विजय जयाड़ा
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