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Thursday, 17 March 2016

यादें



 यादें

  नि:शब्तता के बीच 
    कोयल की कूक !!
अनायास
मदमाती बयार का झोका
अतीत के पलों को
  याद दिलाती कोयल की कूक !
न जाने किस चाहत में
बसंत आते ही
आंगन के नीम पर
अपनी धुन में
   कूकने लगती है !
अजीब हलचल के साथ
   ह्रदय में भारीपन साथ लाती है !!
मन हिलोरे लेता है,
कभी अतीत में
ठहर जाता है !!
तभी घर के पिछवाड़े
पुराने बरगद पर
काँव- काँव करते
कागा का स्वर सुनाई देता है
न जाने क्यों लोगों को
   कागा का सुर नहीं भाता !
  मुझे बहुत भाता है 
शायद स्वार्थ है मेरा
तन्द्रा को आघातित कर
यादों के समंदर से
सहजता से वर्तमान में
ले आता है वो कागा,
मन को हल्का कर
उत्साह जगाता है वो कागा
शायद इसीलिए
मुझे बहुत भाता है कागा
^^ विजय जयाड़ा

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