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Wednesday, 30 March 2016

मुल्क्या उलार !!



मुल्क्या उलार !!

ब्याळि सर्ग दिदा
दिनमान बलद्युँ राई,
बिच बिच मा टिपड़ांणु राइ,
ह्यूंदा का मौसम मा...
दाल भात लोभ छोड़ि
हमन् झंगोरु अर
लोखरा का कड़ेला पर
पटुड्या फांणु बणाइ,
छोट्टा मा झंगोरा अर
फांणु देखी तैं तबारि
मुक्क बणौंदा छा !!
माँ दगड़ि लड़ेंदा छा !!
वे झंगोरा फांणु पर
अब बिज्याँ उलार आइ !!
सगौड़ा त अब...
अपरा मुल्क छुट ग्यन !!
गमलों मा उपजांयुँ
मुर्या पुदीना चूंडि,
मिक्सी कु घघराट छोड़ि
सिलौटा मा रगड़ि तैं
चरचरि बरबरि चटणी बणाइ,
फांणु मा घर्या घ्यु मिलाई,
झंगोरा दगड़ि....
जल्दु बल्दु पटुड्या फांणु
खाण मा बचपन अर...
रौंत्याला पहाड़ कि
बिज्याँ याद आइ !!
दगड्यों ठट्टा नि लगान्....
   अपरि बोलि भाषा मा ...
   "मुल्क्या उलार" सुणांइ !!!
...... विजय जयाड़ा 03/01/14
 
            ( झंगोरा= शमा के चावल, फांणु= कुल्त की दाल को भिगाकर, पीसकर फिर तलकर बना पकवान)
                  रचना में उत्तराखण्ड के पकवान, झंगोरा- फांणु, को बनाकर चटनी और घी के साथ खाने का वर्णन है, ये पकवान बचपन में अच्छे नहीं लगते थे, माँ जब इनको बनाती थी तो माँ से नाराज होते थे, रचना में, जन्मभूमि से दूर रहकर इनको बनाकर खाने में, बचपन और पहाड़ की आती याद का भाव प्रदर्शित करने का प्रयास किया गया है ।


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