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Saturday, 12 March 2016

मैं कौन हूँ !




कौन हूँ !!

 पूछते हो
कौन हूँ !!
ऊँचे मंचो से
दहाड़ता, बरगलता
कोई नेता नही !!
सिंहासन पर
स्वर्ण मुकुट धारण किये !!
माया से विरक्ति का
राग अलापता “ संत “
तो बिलकुल भी नही !!
स्व वैभव प्रचार में
गरीबों को “दान” देता
“मुस्कराता”
तस्वीरें खिंचवाता
कोई “अमीर” भी नही
दरिद्रता व फटेहाल
गरीबों के “संग गुजरे”
चंद लम्हों की तस्वीरों
का “सौदागर” मैं नही
मैं सुप्त हूँ
सुप्त ज्वालामुखी
हलचल से कम्पित होगी “धरती”
लावे की उष्णता से
काल कवलित
हो जायेंगे असंख्य प्राणी
लेकिन उष्णता निवृति
के बाद निर्मित होगी
शांत उर्वर भूमि
ये जानता हूँ
फिर भी मौन हूँ
इसीलिए पूछते हो
कि मैं कौन हूँ !
मैं परदेशी नही
तेरे अन्दर में समाया
"ज़मीर" हूँ !!
अंतरात्मा की आवाज हूँ
पर मौन हूँ
  क्यों पूछते हो
   मैं कौन हूँ !
^^ विजय जयाड़ा

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