स्वाभिमान
धूप निखर आई
लेकिन !
मुंह अँधेरे बड़ा सा
बोरालेकर दौड़-दौड़
कचरा बीनने वाला छोटू
सोया है अब भी
असर लोगों की फटकार,
वितृष्णा का है या
स्वाभिमान की पुकार
अब दिनचर्या बदली गयी है
सब जगते हैं
वो बेसुध सोता है
जब सब सोते हैं
लेकिन !
मुंह अँधेरे बड़ा सा
बोरालेकर दौड़-दौड़
कचरा बीनने वाला छोटू
सोया है अब भी
असर लोगों की फटकार,
वितृष्णा का है या
स्वाभिमान की पुकार
अब दिनचर्या बदली गयी है
सब जगते हैं
वो बेसुध सोता है
जब सब सोते हैं
कद से बड़ा
बोरा लिए
उम्मीदों के साए में
निकल पड़ता है
सूर्य रश्मियाँ
खोजती हैं उसे
इस लोक में
स्वयं को
तिरस्कार और घृणा के
दायरे से दूर,
पहुँच जाता है
छोटू स्वप्न लोक में
बोरा लिए
उम्मीदों के साए में
निकल पड़ता है
सूर्य रश्मियाँ
खोजती हैं उसे
इस लोक में
स्वयं को
तिरस्कार और घृणा के
दायरे से दूर,
पहुँच जाता है
छोटू स्वप्न लोक में
स्वाभिमान की छाँव में
जीना चाहता है !
अन्तर्द्वंद से निकल,
अंतर्मन की चाहत
पूरी करना चाहता है !!
जीना चाहता है !
अन्तर्द्वंद से निकल,
अंतर्मन की चाहत
पूरी करना चाहता है !!
.. विजय जयाड़ा
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