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Wednesday, 30 March 2016

सरगम




सरगम

आओ सरगम इक ऐसा जोड़ें,
राग प्रीत का ऐसा छेड़ें.
हो जल की कल-कल
निखरे विहगों का कलरव उसमें.
बहे बयार तरुवर की जिसमे,
शीतलता चंदा सी हो उसमें.
पर्वत सी दृढ़ता हो उसमें,
सागर सी गहराई हो जिसमें.
योगियों का योग रमा हो,
बलिदानों का सार हो जिसमें,
ऋषियों की पुकार हो उसमें.
धर्म ध्वजा के आलिंगन में,
समरसता बरसे उसमें
छाँव मिले माँ के आँचल की,
मानवता झंकृत हो जिसमें.
सुरसंगम माँ शारदे से उपकृत हो,
स्वर लहरी वीणा से हो झंकृत
आओ मिल सरगम इक जोड़ें
राग प्रीत का कुछ ऐसा छेड़ें ..राग प्रीत का....
^^ विजय जयाड़ा


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