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Saturday, 12 March 2016

अभिलाषा




अभिलाषा

  हे दयानिधे !!
भावों में आ
छद्म, कपटी
विचारों से हटकर,
निरंतर,
नित्य कर्मों में,
मेरे
कर्मपथ में आ.
हे करूणानिधि
मिथ्या है जगत
ये सत्य है.
लेकिन
सत्य ये भी है
कि नियंता है तू
विचलन
कर्म पथ से और
मन चंचल,
जब हो मेरा 
गुरु रूप में,
तब दर्शन दिखा.
हे भक्तवत्सल
माध्यम
भाव पूजा ही
समर्पण है मेरा
चरणों में तेरे
नही भावरहित समर्पण
व्यवहार में मेरे
ये तुझ से नही छिपा
कर विरक्त
मिथ्या आलंबनों से,
जगत आडम्बरों से
मोह भंग कर.
कर आलोकित ह्रदय तल,
रूप में किसी एक आ,
ह्रदयस्थ हो, अब
ज्ञान-दीपक जला..ज्ञान दीपक जला !!
 ^^विजय जयाड़ा
 

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