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छंद मुक्त अभिव्यक्ति मंच " द्वारा बसंत आगमन पर “ चित्र शीर्षक “ के
अंतर्गत आयोजित प्रतियोगिता में 42 रचनाओं में से तृतीय स्थान पर रही मेरी
रचना ..
ऋतुराज
अमवा की डाली बौर झांके
अंगना में खग,मृग वन उछलें रे
उल्लास में हरषाय ये मन
द्वारे हमारे ऋतुराज आयो रे ..
धरती ने नव वसन पहने
सोलह श्रृंगार कर निकली रे
पीत चुनरिया ओढ़ धरती
बलखाती यहाँ - वहां डोली रे..
पल्लव सकुचाय मन ही मन
एक दूसरे को देख मुसकाय रे
ऋतु उलसाय गोरी का मन
गोरी उन्मत्त चुनरी लहराये रे..
बयार छुए जो गोरी का तन...
हिया गोरी तनिक घबराये रे
हिम शिखर देखें उचक-उचक
गोरी चुनरी में मुंह छिपाय रे..
अमवा की डाली कोयल कूके
भ्रमर चित्त भरमाय रे
बाल-यौवन-वृद्ध ख़ुश हो के गाएँ
द्वारे हमारे ऋतुराज आयो रे..
.. विजय जयाड़ा
अंगना में खग,मृग वन उछलें रे
उल्लास में हरषाय ये मन
द्वारे हमारे ऋतुराज आयो रे ..
धरती ने नव वसन पहने
सोलह श्रृंगार कर निकली रे
पीत चुनरिया ओढ़ धरती
बलखाती यहाँ - वहां डोली रे..
पल्लव सकुचाय मन ही मन
एक दूसरे को देख मुसकाय रे
ऋतु उलसाय गोरी का मन
गोरी उन्मत्त चुनरी लहराये रे..
बयार छुए जो गोरी का तन...
हिया गोरी तनिक घबराये रे
हिम शिखर देखें उचक-उचक
गोरी चुनरी में मुंह छिपाय रे..
अमवा की डाली कोयल कूके
भ्रमर चित्त भरमाय रे
बाल-यौवन-वृद्ध ख़ुश हो के गाएँ
द्वारे हमारे ऋतुराज आयो रे..
.. विजय जयाड़ा
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