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Friday 30 October 2015

विचलन !!



 विचलन !!

अभाव उपेक्षा से
त्रस्त होकर मानव,
अक्सर विचलित__
उदास हो जाता है।
काँटो की सेज पर
रह कर भी__
सुकोमल गुलाब,
सबको हंसता दिख जाता है।
इठलाता है
सुगंधित उपवन,
जब भंवरा
फूलों पर मंडराता है !
उड़ जाता है
दुर्गंध की तरफ !
जब कीचड़ में
अविचलित___
कमल को पाता है !!

.. विजय जयाड़ा 30.10.15

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